दोस्तों ट्रांसफार्मर का आज के आधुनिक समय में बहुत बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। आपके घरों में आने वाली बिजली इसी ट्रांसफार्मर के द्वारा उपयोग करने लायक होती है। और इसी के माध्यम से हजारों लाखों किलोमीटर दूर तक बिजली को भेजना आसान हो जाता है।
इसका मुख्य कार्य विद्युत ऊर्जा को कम या ज्यादा करना होता है। इसमें हम वोल्टेज और करंट दोनों को ही कम या ज्यादा कर सकते हैं। इस में घूमने वाला कोई भी भाग नहीं होता है जिस कारण से इसकी दक्षता बहुत अच्छी रहती है।
ट्रांसफार्मर एक ऐसी युक्ति है जिसके द्वारा विद्युत ऊर्जा को एक परिपथ से दूसरे परिपथ में बिना ऊर्जा ह्रास के स्थानांतरित किया जाता है। तथा इसमें ऊर्जा स्थानांतरण के क्रम में निम्न वोल्टेज को उच्च वोल्टेज (low voltage high voltage) में अथवा उच्च वोल्टेज को निम्न वोल्टेज (high voltage low voltage) में बदलने की व्यवस्था रहती है।
ट्रांसफॉर्मर किसे कहते है?
एक ट्रांसफॉर्मर एक उपकरण है जिसका उपयोग विद्युत बिजली आपूर्ति के वैकल्पिक वोल्टेज को बढ़ाने या घटाने के लिए किया जाता है। यह विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत का उपयोग करके करता है, जिसमें कहा गया है कि एक बदलते चुंबकीय क्षेत्र एक कंडक्टर में विद्युत प्रवाह को प्रेरित कर सकता है।
ट्रांसफॉर्मर में तार के दो या दो से अधिक कॉइल होते हैं, जिन्हें प्राथमिक और द्वितीयक घुमाव के रूप में जाना जाता है, जो चुंबकीय रूप से प्रवाहकीय सामग्री के कोर के चारों ओर लपेटे जाते हैं। जब एक प्रत्यावर्ती धारा को प्राथमिक वाइंडिंग पर लागू किया जाता है, तो यह एक उतार-चढ़ाव वाला चुंबकीय क्षेत्र बनाता है जिसे द्वितीयक वाइंडिंग द्वारा उठाया जाता है, जिससे उसमें करंट उत्पन्न होता है। प्राथमिक वाइंडिंग में घुमावों की संख्या का अनुपात द्वितीयक वाइंडिंग में घुमावों की संख्या से ट्रांसफार्मर के वोल्टेज परिवर्तन अनुपात को निर्धारित करता है।
ट्रांसफॉर्मर एक स्थैतिक विद्युत चुम्बकीय युक्ति (static electromagnetic device) होती है। जिसमें दो या दो से अधिक वाइन्डिंग होती हैं। ये वाइंडिंग एक संयुक्त चुम्बकीय क्षेत्र रखती हैं। इनमें से एक वाइन्डिंग जिसे प्राथमिक वाइन्डिंग कहते हैं, को प्रत्यावर्ती वोल्टेज स्त्रोत से जोड़ा जाता है।
जिससे प्रत्यावर्ती फ्लक्स (alternating flux) उत्पन्न होता है, जिसका आयाम ( amplitude ) प्राथमिक वोल्टेज तथा टनों की संख्या पर निर्भर करता है।
अतः प्राथमिक वाइन्डिंग में उत्पन्न प्राथमिक वोल्टेज
Ep = 4.44 fɸm Tp
जहां
- f = आवृत्ति ( Frequency )
- ɸm = म्युचुअल फ्लक्स ( Mutual flux )
- Tp = प्राथमिक वाइन्डिंग (primary winding) में टनों की संख्या ( Number of turns . in primary winding )
यह फ्लक्स द्वितीयक वाइन्डिंग से जुड़ा ( link ) हुआ रहता है जो कि इसमें वोल्टेज उत्पन्न करता है। जिसका मान फ्लक्स के आयाम तथा द्वितीयक वाइन्डिंग की टनों की संख्या पर निर्भर करता है । अतः द्वितीयक वाइन्डिंग में उत्पन्न द्वितीयक वोल्टेज
Es = 4.44 fɸm Ts
जहां Ts = द्वितीयक वाइन्डिंग (secondary winding) में टनों की संख्या
अतः वोल्टेज का अनुपात Es / Ep = Ts / Tp
ट्रांसफॉर्मर एक स्थिर उपकरण (transformer is a stationary device) होता है, जो A.C. की वोल्टेज को कम या अधिक करता है। ट्रांसफॉर्मर विद्युत उत्पन्न नहीं करता है और पावर पर भी इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। यह आवृत्ति से भी प्रभावित नहीं होता है।
इसमें कोई घूमने वाला भाग नहीं होता है बल्कि सभी भाग स्थिर होते हैं। इस कारण इसका कम ध्यान रखना पड़ता है। इस उपकरण से A.C. की उच्च वोल्टेज को निम्न वोल्टेज तथा निम्न वोल्टेज को उच्च वोल्टेज में परिवर्तित किया जाता है।
ट्रांसफार्मर का ज्यादातर उपयोग?
सामान्यतया स्टेप डाउन ट्रांसफॉर्मर (step down transformer) सब-स्टेशनों पर उपभोक्ताओं के लिए वोल्टेज को घटाने के लिए प्रयोग किया जाता है। और ट्रांसमिशन के लिए जनरेटिंग स्टेशनों पर वोल्टेज को बढ़ाने के लिए स्टेप-अप ट्रांसफॉर्मर का प्रयोग किया जाता है।
शहरी इलाकों के लिए सामान्य डिस्ट्रीब्यूशन वोल्टेज 1.1, 2.2, 3.3, 6.6 और 11 kV होता है। किन्ही कम ट्रांसमिशन दूरी के लिए 22, 33kV तथा लम्बी ट्रांसमिशन दूरी के लिए 66, 110, 132, 220 और 440KV होती है। ट्रांसफॉर्मर की दक्षता 90 से 98 प्रतिशत तक होती है।
कार्य के अनुसार ट्रांसफॉर्मरों को पावर ट्रांसफॉर्मर या डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर कहते हैं। ट्रांसमिशन उद्देश्य के लिए मुख्यतः पावर ट्रांसफॉर्मर का उपयोग किया जाता है तथा डिस्ट्रीब्यूशन उद्देश्य के लिए डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर का उपयोग किया जाता है। डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर की रेटिंग 500 KVA तक होती है। ये सामान्यतया 11KV को 440 V तक घटाते हैं।
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