प्राथमिक चिकित्सा का वास्तविक उद्देश्य नाम में व्यक्त किया गया है। प्राथमिक चिकित्सा अपने सबसे मूल रूप में चिकित्सा उपचार है, प्राथमिक चिकित्सा में विभिन्न तकनीकों का उद्देश्य किसी को अस्थायी रूप से स्थिर करना है। दूसरे शब्दों मे कहें, किसी रोग के होने या चोट लगने पर किसी भी व्यक्ति द्वारा दिया हुआ पहला व अपूर्ण उपचार किया जाता है उसे प्राथमिक चिकित्सा (First Aid) कहते हैं. प्राथमिक चिकित्सा doctor नही होता है।
प्रारम्भिक प्राथमिक उपचार निम्न प्रकार है-
विद्युत का झटका लगने के बाद प्राथमिक उपवार ( First Aid after Electric Shock )
- व्यक्ति को बिजली के सम्पर्क से सूखी लकड़ी तथा रबड़ के जूते पहनकर तुरन्त छुडाएं व मेन स्विच को बन्द करें या सॉकेट से प्लग पृथक् करें। यदि ओवरहैड लाइन पर कोई इलैक्ट्रीशियन चिपक गया हो तो तुरन्त तारों पर लोहे की चैन को फेंक दें जिससे तारों में शॉर्ट सर्किट होने से सप्लाई बन्द हो जाए।
- यदि व्यक्ति झुलस गया हो-यदि कपड़ों में से चिन्गारी निकल रही हो तो तुरन्त बुझाएं, यदि शरीर के भाग पर कहीं छाले पड़ गए हों तो इनके ऊपर दबाव नहीं डालना चाहिए। घाव पर बरनोल लगाएं, जले हुए रोगी को भागने व दौड़ने नहीं देना चाहिए।
- यदि व्यक्ति झटका खाने के बाद बेहोश हो- यदि रोगी की सांस बंद हो गई हो लेकिन हृदय की धड़कन चल रही है तो हाथ की नब्ज देखें यदि सही चल रही है तो उसको श्वास देने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए। उसके कपड़ों के बटन खोलकर आराम से लिटाएं उसके बाद देखें कि उसके मुंह में कोई सुपारी, जर्दा आदि खाने की वस्तु तो नहीं है, यदि मुंह में कोई खाने की वस्तु हो तो निकाल दें व कृत्रिम श्वास को चालू करें, उसकी विधियां नीचे दी गई है। रोगी को प्राथमिक उपचार के चलते सहायता हेतु डॉक्टर को सूचित करें या एम्बुलेंस सुविधा हो तो तुरन्त सूचना दें अन्यथा पास के नर्सिंग होम पर ले जाने की व्यवस्था करें। प्राथमिक उपचार की विधियां निम्न प्रकार हैं-
- प्रथम विधि ( First Method ): रोगी के वस्त्रों को सर्वप्रथम ढीला करें। रोगी को छाती के बल लिटाएं। रोगी की दोनों मुजाओं को आगे की तरफ फैलाएं। रोगी के एक तरफ वीर आसन बनाकर बैठे व अपने दोनों हाथों की अंगुलियों द्वारा उसकी पसलियों में इस तरह आकृति बनाएं की अंगूठे मिल जाएं। अब अपने घुटनों पर वजन देकर अपने शरीर के वजन को डालते हुए हाथों से पसलियों के ऊपर दबाव बनाएं, वह भी केवल 2-3 सैकण्ड के लिए। उसके पश्चात् दबाव 2-3 सैकण्ड तक हटा दें। इस तरह क्रिया करने से रोगी के फेफड़ी में श्वास की प्रक्रिया प्रारम्भ ही आएगी। इस क्रिया की एक मिनट में 5 से 20 बार दोहराएं। ऐसा करने से रोगी को बचाया जा सकता है, यह विधि सफर विधि भी कहलाती है। कृत्रिम श्वास क्रिया की शैफर विधि।
- द्वितीय विधि ( Second Method ): जिस समय यह बात हो जाए कि रोगी का सामने का हिस्सा जल गया है तथा घाव हो तो चित्र ( 1.6 ) में दिखाए अनुसार उसका शरीर सीधा रखकर उसको पीठ के बल लिटाना चाहिए। कन्धों के नीचे तकिया या कम्बल या कोई दूसरा नर्म साधन रखना चाहिए जिससे उसका सीना कुछ ऊपर उठ जाए व सिर कुछ नीचे हो जाए। इस विधि के उपयोग हेतु 2 व्यक्तियों की आवश्यकता रहती है। एक व्यक्ति को रोगी के सिर के पीछे घुटनों के बल बैटकर रोगी की दोनों बाहों को कलाइयों से पकड़कर उसके सिर के इर्द-गिर्द ननं तकिया लगाना चाहिए। चित्र ( 1.7 ) के अनुसार रोगी की भुजाओं को उसकी छाती के ऊपर लगभग 2-3 सैकण्ड के लिए लगाना चाहिए।इस क्रिया को करीब 30-35 मिनट तक दोहराना चाहिए। दूसरा व्यक्ति रोगी की जीभ को बाहर की तरफ रखे जिससे वायु के अन्दर जाने में सुगमता रहे। इस प्रक्रिया में फेफड़े सिकुड़ते तथा फैलते हैं, इससे श्वास क्रिया शुरू हो जाती है। कन्धों के नीचे तकिया रखने से श्वास प्रक्रिया अंग पूरी तरह खुल जाते हैं। इस विधि को तब तक चालू रखते हैं जब तक कि रोगी प्राकृतिक सांस लेने योग्य नहीं हो जाता है। इस विधि को सिलवेस्टर विधि भी कहते हैं।
- तृतीय विधि ( Third Method ): यह विधि दो प्रकार से की जाती है
- मुंह से मुंह लगाकर ( Mouth-to-Mouth Respiration ): इस विधि से रोगी को तुरन्त राहत पहुंचाई जा सकती है। इस विधि को शुरू करने से पूर्व रोगी का मुंह अन्दर से साफ करें। जीभ को पकड़कर 2-4 बार अन्दर-बाहर करके गले को नर्म करें क्योंकि विद्युत झटके से रोगी के जबड़े में कसावट आ जाती है व उसका गला सख्त हो जाता है। यदि दांत आपस में कसे हों तो धीरे-धीरे जबड़ों को खोलें। रोगी के मुंह पर साफ रूमाल रखें। पहले आप स्वयं गहरी श्वास खीचें फिर रोगी के मुंह पर अपना मुंह रखकर उसके फेफड़ों में हवा भरें चित्र ( 1.8 ) इस प्रक्रिया से रोगी की छाती ऊपर उठनी चाहिए। शीघ्र ही अपना मुंह रोगी के मुंह से पृथक करें जिससे उसके अन्दर की हवा बाहर निकल सके। इस क्रिया को पहले शीघ्रता से करें कुछ देर बाद एक मिनट में 15 से 20 बार करें व तब तक करते रहें जब तक कि मरीज स्वयं श्वास लेना प्रारम्भ न कर दे।
- नाक से मुंह लगाकर ( Nose-to-mouth Respiration ): यह विधि प्राथमिक उपचार के लिए काफी लोकप्रिय है। रोगी का मुंह व नाक अच्छी तरह से साफ करें, गहरी श्वास खींचकर अपने मुंह को रोगी की नाक से लगाएं तथा हवा उसके फेफड़ों में भरें। शीघ्र ही अपना मुंह हटा लें जिससे हवा बाहर आ सके। शुरू में यह क्रिया तेजी से करें व कुछ देर बाद एक मिनट में 15 से 20 बार दोहराएं।
- चतुर्थ विधि ( Fourth Method ): कृत्रिम श्वास देने के लिए यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है। जिन्हें कृत्रिम श्वसन यंत्र ( Artificial Respirator ) कहते हैं। इसमें रबड़ के वाल्व में से हवा फिल्टर होकर चैम्बर में आती है, यहां इनलेट तथा आउटलेट वाल्व लगे होते हैं जो कि रबड़ वाल्व को दबाने व छोड़ने के साथ खुलते व बन्द होते हैं। हवा एक मास्क के माध्यम से रोगी के अन्दर भेजी जाती है। इस यंत्र से प्राथमिक उपचार करने वाले को भी किसी प्रकार का रोग नहीं लग सकता है। कृत्रिम श्वसन देना बहुत आसान है। रबड़ के वाल्व को 15 से 20 बार एक मिनट में ऑपरेट करना चाहिए। इस क्रिया से आप आसानी से रोगी को मौत के मुंह से बचा सकते हैं, इसे ही प्राथमिक सहायता कहते हैं।
आग लगने के बाद प्राथमिक उपचार ( First Aid after Fire )
- श्रेणी ( A )- लकड़ी, जूट, कपड़ा, कागज से लगी आग को बुझाने हेतु शीतल जल की तेज बौछार देनी चाहिए।
- श्रेणी ( B )-मिट्टी का तेल, पेट्रोल, डीजल, मोबिल ऑयल से लगी अग्नि को बुझाने हेतु फोम टाइप अग्निशामक यन्त्र ( फायर एक्सटिंग्यूशर ) एवं कार्बन डाइऑक्साइड अग्निशामक यन्त्र ( फायर एक्सटिंग्यूशर ) काम आते हैं।
- श्रेणी ( C ) -LPG गैस द्वारा लगी आग को बुझाने हेतु शुष्क चूर्ण वाले अग्निशामक यन्त्र प्रयोग में आते हैं।
- श्रेणी ( D ) -बिजली के तारों द्वारा, उपकरणों, धात्विक पदार्थों में लगी आग को बुझाने के लिए CTC अर्थात् कार्बन टेट्रा क्लोराइड व हेलोन अग्निशामक यन्त्र काम में आता है।
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