दोस्तों, आज की इस पोस्ट में बेसेमर प्रक्रिया क्या है? किसे कहते हैं, यदि आप जानकारी पाना चाहते हो तो पोस्ट को पूरा पढ़िए।
बेसेमर प्रक्रिया क्या है?
इस विधि द्वारा पिघले हुए कच्चे लोहे को एक घड़ेनुमा बर्तन में डालकर जब हवा को ब्लॉस्ट करते हैं, तो हवा में मिली ऑक्सीजन कच्चे लोहे में मिश्रित कार्बन तथा अन्य अशुद्धियों को जला देती है।
इसमें उपयोग होने वाले घड़ेनुमा बर्तन को बेसेमर कन्वर्टर कहते हैं।
इस ऑक्सीकरण से प्राप्त ऊष्मा कच्चे लोहे का तापमान बनाए रखती है तथा उसे अलग से ऊष्मा देने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
बेसेमर कन्वर्टर में अशुद्धियां हटाने का काम निम्न तीन अवस्थाओं में होता है-
1.प्रारम्भिक अवस्था
इस अवस्था में जब हवा को ब्लॉस्ट किया जाता है, तब आयरन, ऑक्सीजन के साथ मिलकर फैरस ऑक्साइड बनाता है, जो स्लैग के रूप में धातु में मिश्रित रहता है। सिलिकॉन तथा मैंगनीज की अशुद्धियां भी ऑक्साइड के रूप में स्लैग में मिल जाती हैं।
इस ऑक्सीकरण के कारण तापमान 1250°C से 1525°C तक बढ़ जाता है। यह अवस्था 3 से 4 मिनट की होती है। इसके बाद दूसरी अवस्था प्रारंभ हो जाती है।
2.मध्यम अवस्था
इस अवस्था में आयरन में मिश्रित कार्बन का ऑक्सीकरण होता है तथा इस प्रकार बनी कार्बन मोनोऑक्साइड गैस कन्वर्टर के मुँह पर सफेद ज्वाला के रूप में जलने लगती है। यह अवस्था 8 से 12 मिनट की होती है।
जब गैस जलना बंद कर दे, तो समझ लेना चाहिए कि आयरन में कार्बन नहीं रह गया है।
3.फिनिशिंग या अंतिम अवस्था
इसमें आयरन में मिली ऑक्सीजन निकालने के लिए तथा वांछित मात्रा में सिलिकॉन, मैंगनीज तथा कार्बन मिलाने के लिए डी-ऑक्सीडाइजर के रूप में फैरो मैंगनीज, फैरो सिलिकॉन या एल्यूमीनियम को मिलाते हैं।
बेसेमर प्रक्रिया की हानियां
यह निम्न प्रकार से हैं-
- इस प्रक्रिया में स्क्रैप स्टील का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
- इस प्रक्रिया द्वारा प्राप्त स्टील में ऑक्सीजन की मात्रा मिश्रित रहती है, जिससे इस स्टील में यांत्रिक गुणों का अभाव रहता है, इसलिए इस स्टील का उपयोग कटिंग टूल, स्प्रिंग तथा आघात सहने योग्य अवयवों के निर्माण में नहीं किया जाता है।
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