मार्किंग क्या है?
यह एक ऐसी संक्रिया (operation) है जिसके बिना किसी जॉब पर कोई भी संक्रिया; जैसे- काटना, मोड़ना इत्यादि सम्भव नहीं है।
मार्किंग (marking) करने के उद्देश्य
- मार्किंग से समय की बचत होती है।
- इससे जॉब को बार-बार नापने (measure) की आवश्यकता नहीं होती है।
- marking करने की रेखाएँ कारीगर के लिए गाइड का काम करती हैं।
- जॉब को अस्वीकृत (reject) होने से बचाया जा सकता है।
मार्किंग के नियम
- यदि मार्किंग नियमों के अनुसार की जाए, तो त्रुटि (error) की सम्भावना कम रहती है।
- marking के समय कारीगर के पास ब्लू प्रिंट (blue print) अवश्य होना चाहिए।
- ब्लू प्रिंट (blue print) को कम-से-कम दो बार पढ़ना चाहिए। मार्किंग की दौरान कारीगर को आवश्यक औजार व उपकरणों का ज्ञान होना चाहिए।
- marking को ड्राइंग के अनुसार ही करना चाहिए। जॉब हमेशा ड्राइंग की माप से बड़ा होना चाहिए, जिससे मशीनिंग प्रक्रिया आसानी से हो सके।
- पंचिंग प्रक्रिया आवश्यकता अनुसार ही करनी चाहिए।
- ज्यादा गहरी पंचिंग नहीं करनी चाहिए।
- ड्रिलिंग वाले स्थान पर पहले से ही marking लेनी चाहिए, जिससे मशीनिंग प्रक्रिया आसानी से हो सके।
- मार्किंग के बाद ब्लू प्रिंट से जॉब की तुलना (compare) करनी चाहिए।
- दो रेखाओं के संपर्क बिंदु पर डॉट पंच (dot punch) से निशान लगाना चाहिए।
- वृत्त या चाप खींचने के लिए डिवाइडर या ट्रेमल (divider or trammel) का प्रयोग करना चाहिए।
मार्किंग की विधियाँ
यह तीन विधियाँ (three methods) होती हैं। जो निम्न प्रकार हैं-
(1.)सेन्टर लाइन विधि
यह विधि टेढ़ी-मेढ़ी आकृति (shape) वाले जॉब की फिनिशिंग में काम आती है, जिसकी कोई भुजा पहले से फिनिश न हो। मार्किंग के दौरान ऐसे जॉब के बीच में एक अनुमानित रेखा खींच ली जाती है। इसी आधार पर मार्किंग (marking) की दूसरी रेखाएँ खींची जाती हैं।
(2.)डैटम लाइन विधि
इस विधि में सबसे पहले एक बेस लाइन को लगाया जाता है, जिसे डैटम लाइन (datum line) कहते हैं। इस लाइन के आधार पर ही अन्य सभी लाइनों को बनाया जाता है। इस विधि का प्रयोग जॉब की संलग्न भुजाओं (attached arms) की फिनिशिंग के लिए किया जाता है।
(3.)टैम्पलेट द्वारा मार्किंग
इस विधि का प्रयोग बड़े पैमाने पर शीघ्र उत्पादन (quick production) के लिए किया जाता है। इस विधि में जॉब के साइज के अनुसार शीट की टैम्प्लेट बना ली जाती है इसके बाद इस टैम्प्लेट को जॉब पर रखकर स्क्राइबर (scriber) द्वारा मार्किंग की जाती है।
मार्किंग (marking) करते समय सावधानियाँ
- marking शुरु करने से पहले ड्राइंग को भली-भाँति पढ़ लेना चाहिए।
- marking में प्रयुक्त स्क्राइबर नुकीला व कठोर होना चाहिए, जिससे पतली व स्पष्ट रेखा बने।
- ड्राइंग के अनुरुप माप के अनुसार ही marking औजारों का चुनाव करना चाहिए।
- marking को पक्का करने से पहले एक बार दोबारा से पूरी marking चैक लेनी चाहिए।
- सेन्टर पंच से निशान इस प्रकार लगाने चाहिए कि marking स्पष्ट दिखाई दें।
- marking करते समय ठीक लाइन पर तथा बराबर दूरी पर बिन्दु लगाने चाहिए।
- बिन्दु लगाते समय पंच को ठीक लम्बवत् (perpendicular) रखना चाहिए तथा बिन्दुओं की गहराई समान होनी चाहिए।
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